कोरोना की 'वैक्सीन' बन गयी है, किन्तु हर रोज की तरह आज भी मार्किट में भारी भीड़ लगी हुई थी। उसी भीड़-भाड़ वाले मार्किट में मैं भी था; जहाँ कोई मास्क लगाए नहीं था, वहाँ मैंने मास्क लगा रखा था। लोग अजीब नजरों से मुझे देख रहे थे, क्योंकि मैं उन्हें 'मास्क' बाँटते हुए कहे जा रहा था, वैक्सीन के बाद भी सुरक्षा रखनी चाहिए... कुछ मेरे बातों को ध्यान से सुन रहे थे, तो कुछ मुफ्त में मिल रहे 'मास्क' को अपने झोलों का शृंगार बना रहे थे।
उसी भीड़ में एक युवती की ओर मैं आकर्षित हुआ। वह युवती भारतीय लड़की-सी दिख रही थी, हालाँकि उस भीड़ में काफी लड़की थी, लेकिन उस 5'10" ऊँची-लंबी युवती में आखिर क्या थी कि मैं उनकी ओर खींचा चला जा रहा था ? अरे हाँ ! वह भी उस भीड़ में एकमात्र लड़की थी, जिसने 'मास्क' लगा रखा था, शायद इसलिए मैं उस लड़की की ओर आकर्षित हुआ ! नहीं; यह कहना शायद झूठपन हो, क्योंकि मास्क से छुपी चेहरे में मैं उसकी नशीली आंखों पर फिदा हो गया था।
वह साधारण घर की लग रही थी !...परन्तु पहनावा मॉडर्न युगीन लड़की जैसी- काली जीन्स के साथ टॉप, लंबी नाक-नक्श पर मासूम-सा तिल, जिसके कारण गोरे चेहरे पर नाजुक मुस्कान के साथ वह काफी प्यारी लग रही थी और मैं खड़े भीड़ में बस उसे निहारे जा रहा था; इसलिए जब उसे किसी का फ़ोन आया और वह भीड़ से कुछ दूर निकल गयी, तो मैं भी मास्क बाँटते-बाँटते उसके पीछे हो लिया। जब मास्क उतारकर उसने फ़ोन पर बात करनी शुरू की, तो मैं उस साधारण लड़की की असाधारण सुंदरता को देख पाया। वह मोबाइल पर बातें करती-करती मार्किट से दूर निकल गयी और उसके पीछे मैं भी निकल गया...
वो जहाँ-जहाँ जा रही थी मैं उसकी नाजुक क़दमों के टापों से कुछ दूरी लिए पीछा कर रहा था। काफी देर तक पीछा करने के बाद वह मुझे कई घुमावदार गलियों से घुमाते हुए लिए जा रही थी, पर उसे यह नहीं पता था कि कोई उनके पीछे लगा है। उसने 'bye' कहते हुए फ़ोन रखा और मास्क पुनः पहन ली। अब वह अपनी स्मार्टफोन पर कुछ टाइप करती हुई, शायद किसी से चैटिंग करती हुए गली में आगे बढ़ी चली जा रही थी।
मैं भी भौतिक दूरियाँ बनाते हुए पीछा कर रहा था। पीछा करते-करते, वह मुझे ऐसी गलियों में प्रवेश करायी, जहाँ स्लम बच्चे नग्न-धड़ंग हो सूखी रोटी को खा रहे थे और बगल में विधायक जी का 4 मंजिला मकान उस 'स्लम' बस्ती के सीने को चीरने की कोशिश कर रही थी, मेरे हाथों में मास्क के कुछ पैकेट बचे थे, जिसे मैंने उन बच्चों को दिया, फिर बगल में खड़ी कुछ बुजुर्ग महिलाओं को भी 'मास्क' दे दिया, उनमें एक बुजुर्ग महिला ने कहा-
"बेटा 'मास्क' के बदले 'कंबल' दे देते, तो ठंडी में राहत मिलती।"
मैं उन्हें इतना ही कह सका- 'दादी, चादर जितनी बड़ी है, मैं उतना ही पैर फैला सकता हूँ न, लेकिन आपके लिए कल मैं कंबल लेते आऊँगा।' यह बात जैसे मैंने कही, अन्य महिलाएँ मुझे देखने लगी और उनकी आँखें मानो यह कह रही है- 'हमें भी चाहिए।'
मैं उनके दर्दों को समझ सकता हूँ, लेकिन मेरी भी एक लिमिटेशन है। मैं उनके चेहरों को पढ़ते-पढ़ते यह भूल ही गया कि मैं किसी लड़की के पीछे हूँ, फिर मैंने उस लड़की को ढूंढ़ना शुरू किया, वह बहुत दूर नहीं निकली थी, बल्कि विधायक जी के घर के बगल की पगडंडी पर चली जा रही थी।
मुझे लगा वह विधायक जी के रिश्तेदार होंगे या फिर स्लम एरिया में ही रहती होंगी, परन्तु इतनी मॉडर्न लड़की और ऐसी एरिया में ? हाँ, मेरा यह सोचना गलत था, क्योंकि वह वहाँ रुकी नहीं, आगे बढ़ती चली जा रही थी। अभी तक मैं उसके पीछे चल अपना कीमती एक घंटा गँवा चुका था।
वह लड़की फिर आगे बढ़ी, मैं भी साथ हो लिया। वह चलती चली जा रही थी, बिना रुके-थके अनवरत चली जा रही थी, किन्तु मुझे थकाए जा रही थी। काफी घंटे हो गए थे, मास्क लगाए हुए; मन खिन्न-सा हो गया था।
किन्तु मैंने भी सोच लिया था कि इस मॉडर्न लड़की का घर देखकर रहूँगा, अवश्य ही। वह अब ऐसी एरिया में रुकी, जहाँ लोग पानी के लिए झगड़ रहे थे, उन्हें कोरोना की नहीं 'पानी' की चिंता हो रही थी; वहाँ झगड़े हो रहे थे, पर कुछ लोगों ने मास्क पहन जरूर रखे थे; परन्तु उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि वह कोरोना के डर से नहीं, अपितु मुँह में आए 'पिम्पल्स' को छुपाने के लिए मास्क लगा रखे हैं, क्योंकि अधिकतर के नाक 'मास्क' से कवर नहीं थे। मैं उस ओर से दिमाग हटाकर पुनः लड़की पर फोकस हुआ, मुझे लगा 'सोशल वर्कर' होगी, इसलिए ऐसी एरिया में आ रुकी है, पर वह किसी से भी बात नहीं कर रही थी, बस आगे बढ़े जा रही थी। हालात को देखते हुए मैं भी बढ़ा चला जा रहा था। अब वो ऐसी जगह से जा रही थी, जहाँ के सड़क का सिचुएशन 'जर्जर' था, वह कुछ देर के लिए वहाँ रुकी और फिर आगे बढ़ी, मैं भी बढ़ा उनकी पदचापों के मौन-सहारे...
अब वह लड़की एक अस्पताल के पास जा रुकी, मैं उसके पीछे ही था। वह अस्पताल में कुछ देख रही थी, मैं भी देख रहा था कि एक औरत अपने पति के लिए ऑक्सीजन की मांग कर रही थी, किन्तु हॉस्पिटल में डॉक्टरों का अता-पता नहीं था। हाँ, कुछ लोग मोबाइल निकालकर उस महिला की दर्द का विडियो जरूर बना रहे थे ! वह मॉडर्न लड़की, यह सब देखते हुए भी वहाँ नहीं रुकी और आगे बढ़ गयी, किन्तु मैं उसके पीछे चलते-चलते अस्पताल के एक डॉक्टर को फ़ोन लगाकर वहाँ का जायजा बता दिया। हाँ, वह डॉक्टर मेरे मित्र हैं और तुरंत आकर उसने अपना फर्ज निभा भी दिए। इन सबों के बीच मेरी नजर उस लड़की पर ही टिकी हुई थी, मैं अब भी उसके पीछे लगा हुआ था, पता नहीं क्या बात थी उसमें, मैं उससे दूर नहीं जा पा रहा था ?
किन्तु अब मुझमें इसतरह से पीछा करने की शक्ति शेष नहीं रह गया, क्योंकि मैं पिछले ४ घंटे से उस लड़की का पीछा किये जा रहा था और वह भी पैदल, मेरे हाथों में पड़ी 'मास्क' की पैकेट खत्म हो गयी थी। मैं उस लड़की के पीछे चलते हुए १०० पैकेट मास्क जरूरतमंद लोगों को बाँट चुका था और यह भी देख चुका था कि कई लोग आवश्यकता के नामपर 1 से अधिक 'मास्क' मांगकर दुकान में बेच दे रहे हैं; कारण जानने पर मालूम चला कि 'वे बीमारी के बचाव से नहीं, बल्कि 'पेट' की भूख से मर रहे हैं...' और मैं उनके हालातों के बारे में सोचते हुए उस सुंदर युवती का पीछा किये जा रहा था।
फिर वह गली की ATM में गयी, पर 'रुपया नहीं है' लिखा का बोर्ड टंगा, उसे जैसे ही दिखाई दी, वह मुड़ी और आगे बढ़ चली। मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैंने प्रश्नोत्तर का निश्चय करके उसे टोक ही दिया-
ऐ सुनो !!!
पर वो ना सुनी, ना ही रुकी, क्योंकि शाम के ७ की घन्टी कुछ देर पहले एक एरिया में सुनाई दे चुकी थी। उसने यह सोचा होगा कि कहीं उनके साथ कुछ घटित न हो जाय, इसलिए वह नहीं रुकी।
फिर हिम्मत करके मैंने पुनः टोका-
'ऐ सुनो !!! आपसे ही कह रहा हूँ।'
अबकी वो रुकी, ठहरी और बोली-
'क्या है ?'
मैं अनिश्चय की स्थिति से निकलते हुए 'मास्क' उतारकर अपने दिल की जुबान को स्वमेव चला दी-
'मैं पिछले ४ घंटे से आपका पीछा कर रहा हूँ, पर आप ऐसी-ऐसी स्लम जगहों पर से निकल रहे हैं कि मेरा मन अब उबकी करने का कर रहा है।' मैंने यह बात एक ही सुर-ताल में कह डाला।
इसपर उसने 'मास्क' उतारी, मुझे देखा और हँस पड़ी। मुझे अटपटा लगा, परन्तु उसकी हँसी और चेहरे की कोमलता मेरी दिल में समा गई।
मैंने पूछा-
क्यों हँस रही हैं आप ?
उनके जवाब ने मेरे 4 घंटे की मेहनत को चार-चाँद लगा दिया।
उसने कहा- 'मैं तुम्हें जान-बूझकर ऐसी एरिया और ऐसी जगह से लाई हूँ ?'
उस परी-सी लड़की की जवाब ने मेरे जवां दिल को और भी बच्चा बना दी।
मैंने कहा- आपने मुझे नहीं लाया, अपितु मैं तो खुद-ब-खुद आपके पीछे आया हूँ...अगर लाया, तो फिर कैसे ?
'कैसे मत पूछो ?
मैं तो बस तुम्हें हालात दिखा रही थी-
उदय भारत की ?
मैंने कहा-
ऐसी भारत !!! जहाँ इतनी गरीबी, भूखमरी, पानी का संकट है। अस्पताल है; पर सेवा नहीं... किंतु आप हैं कौन और मुझे ये सब क्यों दिखा रही हैं ?
उसने कहा-
मैं तुम्हारी माँ हूँ।
मैं पागल-सा हो गया। मैंने कहा-
मेरी माँ तो घर पर है और आप अभी लगती हैं मात्र 25 की और मेरा भी इतना ही उम्र है, फिर बताएँगी आप किस तरह से मेरी माँ हुईं ?
उसके जवाब ने मुझे और भी शॉक्ड कर दिया-
मैं पूरे भारत की माँ हूँ।
प्रत्युत्तर में मैंने कहा-
अब आप मुझे इर्रिटेड मत कीजिए।
वह बोली-
पगले !!! मैं भारत माँ हूँ।'
मुझे लगा कि आज किसी लड़की को 'पागल' बनने की मन हो आई है... ओह्ह ! मैंने क्यों पीछा ही किया ?
मैं भी क्वेश्चन पर क्वेश्चन दागे जा रहा था-
भारतमाँ, इतनी मॉडर्न और मास्क के साथ।
उस कथित 'भारतमाता' से उत्तर सुनने से पहले ही 'अलार्म' की घंटी बजी और मैं जग गया। आँख खुली तो पाया 'गणतंत्र दिवस' आ गई है और मैं आँख मलते ही कह उठा-
'भारतमाता की जय। कोरोना हो पराजय।'
TATSAMYAK MANU
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Majedaar
Behad Sundar Katha
Bejod Kahani
Waah
Jabardast