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दहेज़ | Devidutt Tripathi

(ये कहानी एक गरीब किसान परिवार की है जिसके घर में बेटी जन्म लेती है जिसके घर में खाने को भी ठीक से ना हो वो बेटी कैसे पालता है चलिए देखते है।)


एक किसान के बेटा जिसका नाम रमेश रहता है , रमेश बहुत ही छोटे से गांव में रहता है ,

रमेश मात्र 11 साल का बहुत गरीब परिवार का बच्चा है और वो अपनी पढ़ाई छोड़ पिता की साथ खेती में हाथ बटाने लगता है ।

अपनी परिवार की परिस्थिति को देख के ,पिता ऐसा चाहते नहीं थे मगर मजबूर थे अपने हालतो से ,

करते भी तो क्या पढ़ाई के लिए पैसे भी तो होने चाहिए उनके पास तो पहनने को ज्यादा कपड़ा भी नहीं था , पढ़ाई कहा से होती ।


देखते देखते 9 साल बीत गये रमेश अब 20 साल का हों गया मगर उनलोगों की परिस्थिति वैसे की वैसे ही थी , एक दिन अचानक रमेश की पिता की तबियत ज्यादा खराब हों गई और वो बिस्तर पकड़ लिए , अब घर की सारी जिम्मेदारी रमेश पे आगई , रमेश अपने परिवार का एकलौता लड़का था , खेती करके भी पूरा पैसा ये लोग निकाल नहीं पाते थे , ऊपर से घर का खर्चा , पिता का दवा , ये सब कैसे होता , अब माता जी की भी तबियत खराब होने लगी थी , परेशानी और भी बढ़ गई , इनलोगो के साथ कुछ ऐसा था कि एक परेशानी खत्म होने का नाम भी नहीं लेती की दूसरी दर्वाजे पे दस्तक दे देती थी।

इन सारी परेशानियो को मद्देनजर रखते हुए रमेश की पिता ने रमेश की शादी कराने के फैसला लेलिया , ताकि घर का कुछ तो भार कम होगा ।

जैसे तैसे कर के रमेश की पिता ने रमेश की शादी करा दी , अब एक ही कंधे पे एक और जिम्मेदारी बढ़ गई "पत्नी" की।

पत्नी के आने से रमेश की माँ का भार थोड़ा कम हुआ क्यों की घर की जिम्मेदारी रमेश की पत्नी ने संभाल लिया था ।

पत्नि के आने से घर में थोड़ी खुशी का माहौल बन गया था , कि तबतक अचानक खबर आई की खेत में आग लग गई है ,और सारी फसले बर्बाद हो गई है।

रमेश भागता हुआ खेत की तरफ पहुंचा और जो उसने देखा वहां की अपने सर पे हाथ रख के वहीं बैठ गया । पूरे एक साल की मेहनत बर्बाद हो गई । सारी फसले जल चुकी थी । एक खेती का है आशा था इनके घर जो की अब वो भी नहीं रहा । ये खबर रमेश की पिता को भी लगी और वो इस सदमे को बर्दाश् नहीं कर पाये । "रमेश के पिता के देहान्त् है गया।

रमेश् अभी इस खबर से कभी तक सुलझा नहीं था कि उनके घर पे सबसे बड़ी आफत आगई ।

इधर रमेश का पिता के देहान्त् हुआ और दूसरी तरफ रमेश की पत्नी माँ बनने वाली थी ।

अब रमेश अपने पिता की मृत्यू पे दुःखी हो या खुद पिता बनने की खुशी जताये ।

फिर भी रमेश ने हार नहीं मानी क्यों की रमेश बचपन से दुखो के शाय में रहा है उसे हर परिस्थिति से लड़ना आता था ।

रमेश् ने ठाकुर लोग के घर में नौकरी पकड़ ली ताकि उसका घर बार चलता रहे , किसी तरह से करके रमेश ने अपने घर को संभाल रखा था ।

देखते देखते 9 महीने बीत गये अब बारी आगई बच्चा होने की ।"मूबारक हो लक्ष्मी का आगमन हुआ है , आपको बेटी हुई है"।

जब बेटी की बात सूनी तो गांव वाले तरह तरह की बातें करने लगे ।"ये तो खुद गरीब है खाने को भी ठीक नहीं है इनके घर उपर से बेटी हो"। इस तरह की बातें होने लगी।

रमेश ने सीधा जवाब दिया। बहुत दिनों बाद मेरे घर में खुशियाँ आई है , इस गरीब के घर आज लक्ष्मी आई है"। घर में एक बच्चा आने से घर में चहल पहल तो हो गई , लेकिन रमेश की चिंता अब बढ़ गई क्यों की अब वो एक बेटी का बाप बन चुका था।

लेकिन रमेश ने एक बात ठान ली थी , कि जो जिंदगी वो जिया है वो अपनी बेटी को नहीं देगा , उसे पढ़ायेगा उसे कुछ बनाएगा ।

रमेश जब भी शाम को घर आता तो उसकी बेटी पूछ देती थी

"पापा क्या लाए हो मेरे लिए" "रमेश बोल ना पाता कि बेटी आज कमा ना पाया तेरे लिए ।

बेटी की बात वो रात भर सोचता रहा , खुद को कोसता रहा कुछ समझ ना पाया ,

कल किसकी मजदूरी करुँ वो अबतक समझ ना पाया।

धीरे धीरे बेटी अब बड़ी हो चुकी सब समझने लगी थी , कैसे कैसे पाल पोस के बेटी को बड़ा तो कर दिया , मेहनत्त मजदूरी कर बेटी को पढ़ा दिया उसे काबिल बना दिया ,

अब बारी आ गई उसकी शादी की

रमेश की बेटी पढ़ी लिखी थी लड़का अच्छा मिल गया सरकारी नौकरी करता था लड़का।



लेकिन अपने देश का हाल कुछ ऐसा है कि जितनी बड़ी कुर्सी होगी दहेज़ उतना ही बड़ा होगा ।


मेहनत मजदूरी करके बेटी की पढ़ाई पूरी कराई,

खेत मकान बेच के बेटी की शादी कराई ,

जा तो नहि रही थी ,लेकिन कबतक रहती कुन्वारी,

आखिर उसे भी तो अपना घर बसाना था , यही एक बाप का फर्ज था जो उस बाप को चुकाना था।


चली गई बेटी हो गई विदा, अब शुरू हुआ उसके जिंदगी का सिलसिला।

शादी के 6 महीने तो वो अच्छे से बिताइ , एक दिन वो रोते रोते वापिस घर आई ,

पूरे गांव में भीड़ लग गया, आखिर ऐसा क्या बात हों गया।

रमेश ने पूछा कि क्या हुआ बेटी को किसने रुला दिया,

रोते रोते वो बाप की सीने से लिपट गई और बोली ससुराल वालोंं में दहेज़ के लिए मुझे अपने घर से निकाल दिया।

ये सुन उस बाप की पैरों तले ज़मीन खिसक गई ,

और पूछा कि क्या माँगा है उनलोगों ने दहेज़ में ,

बेटी ने बोला दहेज़ की मांग है 4 चक्का गाड़ी ,

ये सुन सब हक्का बक्का रह गये ,

अरे रमेश का पास तो साईकिल भी नहीं थी कहा से लाता इतनी महंगी सवारी।

कैसे कैसे करके तो उसने बेटी की पढ़ाई पूरी कराई थी , खेत मकान बेच के उसकी शादी कराई थी ,

पढ़ लिख के वो इतना काबिल।बन चुकी थी , कि।अगर तुमने उसे एक मौका दिया होता तो वो तुम्हारे साथ तुम्हारे पूरे खानदान को खड़ा कर सकती थी।

मौका किसी ने नहीं दिया ,भरोसा किसी ने नहीं किया , सबको एक ही बात लगती थी कि वो एक लड़की है वो क्या कर सकती है ।

रमेश ने अपनी बेटी को बोला कि बेटी अब रहने दो मत जाओ ससुराल वो परिवार ठीक नहीं है तुम्हारे लिए तुम अब यही मेरे पास रहो ,

रमेश की बेटी ने बोला कि पापा वो परिवार ठीक नहीं है तो ठीक करना होगा , क्यों की ये सिर्फ मेरी ही बात नहीं है मेरी जैसी और भी ना जाने कितने लड़कियों की जिंदगी इनसब के चक्कर् में बर्बाद हो जाती है ,

हाथों की मेहंदी अभी हाथों से उतरती नहीं है कि दहेज़ के लिए तलाक तक हो जाती है ।

उसने ठान लिया की अब वो इस प्रथा को बद्ल् के रहेगी , और उसने मुहीम छेड़ दी ।

रमेश की बेटी पढ़ी लिखी थी , समझदार थी। उसने उन सारी लड़कीयो को अपने साथ जोड़ लिया जो इस दहेज़ प्रथा से पीड़ित थी , उसने एक संगठन उसनेक निर्माण किया , और वहां के कुछ उच्चाधिकारियो से मिलकर एक योजना बनाई ।

उसकी योजना कुछ थी कि की अब से जहां भी शादी होगी वहां दहेज़ लड़की वाले नहीं बल्कि लड़के वाले को देना होगा ।

क्यों की आप शादी कर रहे हो , किसी और की बेटी को अपने घर ला रहे हो , तो जितनी जरूरत उसको है तुम्हारी उतनी ही जरुरत तुमको भी है उसकी ।

एक् बाप से तुम उसकी औलाद लेकर चलें आते हों , बदले में उसको क्या मिलता है इसीलिए अबसे लड़के वालोंं लड़की वाले को दहेज़ देंगे ।

इस् योजना का विरोध तो बहुत हुआ समाज में लेकिन रमेश की बेटी ने हार नहीं मानी थी ,

रमेश की बेटी अपने इस मुहीम की वजह से समाज में चर्चा का विषय बन चुकी थी , हर कोई उसे जानने लगा था ,यहाँ तक की न्यूज़ रिपोर्टर वाले भी रमेश की बेटी का इंटरव्यू लेने के लिए आने लगे ।

जब उसने इंटरव्यू दिया तो उसने सिर्फ एक बात बोली थी जो शायद सबके जेहन में घर कर गई थी ,

"जवाब ये था कि"

जब शादी होती है तो रिस्तेदार ये नहीं पूछता की बहु कैसी आई है ,

बल्कि वो ये पूछता है कि दहेज़ में क्या क्या लाई है ।

तुमलोग अपनी इज्ज्त बचाने के लिए ना जाने कितनों की जिंदगी बर्बाद कर देते हों ।

इसीलिए ये मुहीम चलाई गई है इस इंटरव्यू की बाद रमेश की बेटी पूरे देश में छा चुकी थी और उसकी आवाज़ की गूंज संसद भवन तक पहुँच गई ।

देश के प्रधानमन्त्री रमेश की बेटी को दिल्ली बुलाए और उससे बात चित की बात चित की दौरान उस बेटी ने वो साड़ी बातें बताई मंत्री जी को जो देश में चल रहा है और उनको दिख नहीं पा रहा है , मंत्री जी ने बहुत गौर से उसकी बातें सूनी और उन्होंने ये विश्वाश् दिलाया की अब इसोए सख्त कार्यवाही की जाएगी ।

ये सुन उस बेटी का मनोबल बढ़ गया और शायद उसे लगने लगा कि उसकी मेहनत रंग लाई है ,

देश की हर बेटी को न्याय मिलेगा शायद वो ये जंग जीत के आई है ।

दिल्ली से लौटने के ठीक 3 दिन बाद मंत्री जी ने ये घोसणा कर दी की आज से और अभी से देश में दहेज़ प्रथा बंद की जाती है और जो भी दहेज़ की मांग करेगा उसके ऊपर कानूनन कार्यवाही की जाएगी ।

रमेश् की बेटी ने इस लड़ाई को जीत लिया था ,

हर कोई उस बेटी की तारीफ़ कर थक नहीं रहा था ,

इससे रमेश की भी इज्ज्त समाज में कई गुना ज्यादा बढ़ गई थी , हर कोई रमेश को देख हाथ जोड़ के नमस्कार कर रहा था।

सब् एक ही बात बोल रहे थे रमेश को देख के वो देखो उस बेटी का बाप जा रहा है जिसने एक ऐसी प्रथा को बंद करा दिया जिसकी कल्पना शायद किसी ने ना की थी ।

एक् दिन अचानक् रमेश का दामाद रमेश की घर आता है अपने पूरे परिवार के साथ और रमेश से हाथ जोड़ के माफ़ी मांगता है , शायद उसे भी एहसास हो गया था कि उसने जो किया गलत किया था शायद पछ्तावा हो रहा था उसे की चंन्द रुपयों के खातिर उसने क्या खो दिया ।

वो ये बात समझ चुका था कि नारी कभी अबला नहीं होती ,

तुम चार पैसे कम के मकान तो बना लेते हों मगर उस मकान को घर बनाने वाली एक नारी होती है ,

तुम कमा के घर में राशन तो ला देते हों मगर उस राशन को भोजन बनाने वाली एक औरत होती है ,

तुम जिंदा तो रहते हों मगर तुमको जिंदगी देने वाली एक औरत होती है ।


Devidutt Tripathi


Guidelines for the competition: https://www.fanatixxpublication.com/write-o-mania-2023

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