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दादा-दादी के संस्कार | Payal Pokharna Kothari

यह कहानी हैं बड़े शहर में एक छोटे से घर मे रहने वाले श्रीमान औऱ श्रीमती वर्मा की जो अपने बेटे राज औऱ बहु किरन के साथ रहते है । छोटे से घर मे भी ये सब बहुत ख़ुशी ख़ुशी रहते थे, औऱ किरन तो अपने सास-ससुर को माता पिता का दर्जा देती है । दिन बीतते गए फ़िर उनके घर मे एक लक्ष्मी का जन्म हुआ जिसका नाम रखा -"प्रिया"।


प्रिया के जन्म के बाद मानों राज की क़िस्मत ही चमक गई, कहाँ एक छोटी सी नॉकरी करने वाला राज आज इतना आगे बढ़ गया, धीरे धीरे उसके 3 मंजिला मकान, नौकर चाकर, शान-ओ-शौक़त सब हो गया। बहुत खुशी ख़ुशी वक़्त बीत रहा था कुछ समय बाद श्रीमान वर्मा के घर एक शहजादे का जन्म हुआ जिसका नाम था राहुल।



प्रिया औऱ राहुल अपने दादा - दादी के बहुत लाडले थे, प्रिया और राहुल का अपने दादा दादी के प्रति अति लगाव औऱ स्नेह से अब किरन को ईर्ष्या होने लगी थी। अपने दोनों बच्चों को अपने दादा दादी से दूर रखने के लिए किरन उन दोनों को अकेला ही नही छोड़ती थी। एक दिन किरन ने राहुल से अपने माता पिता को घर से निकाल देने के लिए कहा, लेक़िन राहुल ने साफ़ मना कर दिया कि मेरे माता पिता इस घर से कही नही जाएँगे । लेक़िन धीरे धीरे उसकी कामयाबी औऱ घमण्ड ने शायद उसका फ़ैसला बदल दिया।


राहुल ने उनको घर से तो नही निकाला लेक़िन अपने 3 मंजिला घर के किसी एक कौने में एक रूम में क़ैद कर लिया। फ़िर क्या था अब श्रीमान और श्रीमती वर्मा का वो एक कमरा ही उनका घर था, उसी कमरे में वो खाना बनाते, खाते और वही सो जाते। घऱ अलग कर देने पर भी किरन - प्रिया औऱ राहुल का अपने दादा दादी से मिलना नही रोक पाई, उसको ना पसंद होते हुए भी प्रिया औऱ राहुल उनके साथ घण्टो बाते करते थे।

श्रीमान औऱ श्रीमती वर्मा उन्हें अच्छी अच्छी बातें सिखाते थे, कभी भी उन्होंने राज औऱ किरन के बारे में गलत नही सिखाया। वो हमेशा यही कहते कि-"उन्होंने जो किया वो उनके कर्म हैं लेक़िन तुम दोनों बच्चों को हमने संस्कार दिए हैं तो इन संस्कारों को कभी ग़लत मत होने देना, हमेशा अच्छे कर्म करना।"


उस एक कमरे की चार दिवारी में रहते रहते अब श्रीमान औऱ श्रीमती वर्मा थक गए थे धीरे धीरे उनकी हालात बिगड़ती जा रही थी। फ़िर अचानक दोनों ने एक साथ अपनी साँसे त्याग दी। प्रिया औऱ राहुल की तो दुनियां ही बदल गई उनका साथी , पथ प्रदर्शक उनकी प्रेरणा उनके दादा दादी उन्हें छोड़ कर चले गए। अब उनके पास बात करने के लिये कोई नही था, वक़्त बीतता गया औऱ प्रिया शादी कर अपने ससुराल चली गयी। उसको दिए संस्कारों की वजह से वो ससुराल में बहुत खुश थी। थोड़े समय बाद राहुल की भी शादी हो गई और किरन की भी बहु आ गई।


अब राज औऱ किरन भी सास ससुर बन गए, थोड़े समय बाद राहुल ने और उसकी पत्नी ने भी राज और किरन को उसी कमरे में छोड़ दिया जहाँ उसके दादा दादी रहते थे।


कुछ वक़्त बीत जाने पर राहुल अपने माता पिता को लेने आया औऱ बोला -"बस अब और नही अब आप चलिये औऱ अपना घऱ संभालिये।" राज और किरन आश्चर्य से उसे देखने लगे , तब राहुल में बोला-"मेरे दादा दादी ने मुझे ऐसे संस्कार नही दिए है कि मैं अपने माता पिता को बुढ़ापे में तड़पने के लिए एक कमरे में बंद कर दूं।


"दादा दादी ने हमेशा यही कहा कि तुम्हारे पास कितनी ही दौलत क्यों ना आ जाए तुम अपने संस्कार मत भूलना, तुम्हारे माता पिता ही तुम्हारी असली दौलत है।"


राहुल की बाते सुन कर राज और किरन को अपनी गलती पर बहुत पश्यताप हुआ उन्होंने हाथ जोड़ कर राहुल से माफ़ी माँगी। उन्होंने श्रीमान औऱ श्रीमती वर्मा की तस्वीर पर माला चढ़ाते हुए अपनी गलती सुधारी। अब राज किरन अपने बेटे और बहू के साथ हँसी खुशी आराम से अपना जीवन बिता रहे है।


शिक्षा - वैसा ही करो जैसा आप अपने लिए सह सको।


Payal Pokharna Kothari

Guidelines for the competition : https://www.fanatixxpublication.com/write-o-mania-2023

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