कितना बढ़िया पल होगा न वो? जब हम पढ़ने की अवधारणा कों न्याय दे रहे होंगे। भले ही तुम्हारी दिशा अलग होगी। मेरी दिशा अलग होगी। हमारे घर के छोटे से बने अटरीये पे पड़े हुए सोफे पे मैं अपनी पिट टिकाके बैठा रहूँगा। तुम अपना सर मेरे गोदी मे रखकर मानवीय सभ्यता के वक़्त खुदाई मे मिली सबसे पुरानी चीज यानी किताब और वो भी अमिश किताब पढ़ रही होगी। साथ ही मुझे कहानियाँ भी सुना रही होगी।
घर के बरामदे मै खेलती हवा हमारे दोनों के पैरों कों सेहलाते हुए तुम्हारे कहानियों का मजा ले रही होगी। कहानी मै शिव और सती का संवाद जारी हैँ। सती ज़िंदा नही हैँ। लेकिन बर्फ की सिल्ली पर शिव के मन की उम्मीदों से ज़िंदा सती के शरीर के टुकड़े हैँ। जिनसे शिव बात कर रहे हैँ। कहना का प्रयास कर रहे हैँ। की। शक्ति विहीन 'शिव' शवः। और मैं तुम्हारे माथे पर कहानियों की वजह से पड़ी हुई आटियों पर थपकिया देते हुए तुम्हे कोई ओर दिशा देता रहूँगा। हमारे इशारों वाली बात सुनके तो हमारी किट्टी नें भी मुँह घुमालिया हैँ।
वैसे तुम्हे एक बात बताऊ संकेत? मैं हर बार गलत जगह चुनती थी। लेकिन आज मुझे सही जगह मिल गई हैँ । जब हमे दोनों एक ही छत और 4 दीवारियों के भीतर मौजूद थे। पता नही क्यों हमारे तरंगों नें एक दूसरे से कनेक्ट नही किया। अब मै बताऊ क्यों? क्योंकि तुम गणित पढ़ती थी और मैं पिछे कोने मै बैठकर साहित्य पढता था। भले ही दोनों विषयों मै मानना ही होता हैँ। कल्पना ही होती हैँ। तुम × मानकर गाणित सुलझाया करती थी और मै उस किरदार कों अपना मानकर दोस्ती करता था। तुम्हारे आंकड़ो की क्रांति मै आखिर मे उत्तर कभी कभी 0 आता था। लेकिन जब मै आखिरी पन्ना पढ़के खत्म करता था तब। ढेर सारे तजुर्बे साथ रहते थे। ओर एक बात बताओ मुझे संकेत। खुद के नाम का तो इतना बोलबाला करते हो। हर एक कहानी मै अपना नाम डालते हो। फिर तुम्हे मेरा नाम लिखने मै क्या दिक्कत हैँ?
सुनो, तुम्हारा नाम लिखने का एक समय आयेगा। जब मेरी लिखी कहानियों की शुरुआत तुम खुद होगी।
Tuakaram Sainath Mandgilwar
Guidelines for the competition : https://www.fanatixxpublication.com/write-o-mania-2023
Comentários