SAFAR SIKHAR TAK
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रख दे चाहे शमशीर ही क्यूँ ना हमारे गर्दन पर कोई
मगर तोड़ सकता नहीं मेरे बुलंद हौसलों को आगे बढ़ने से।
प्रवीणा कुमारी
चलने से कहा थकता हैं 'आफ़ताब-ए-आब',
मेरा इक़रार तो 'सफर शिखर तक' जाना हैं l
सुरज कुमार कुशवाहा
सफ़र से शिखर तक मैंने व्यक्ति को रोते देखा है,
वक़्त बदलते, पर हिम्मत का दीप नहीं बुझते देखा है।
दिव्या गंगवार
मैं खुद से खुद की पहचान क्या लिखूँ,
हूँ नादान परिन्दा फिर अपनी उड़ान क्या लिखूँ ?
यादव बलराम टाण्डवी
Compiler
Pritam Singh Yadav , Vineeta Ekka
ISBN
9789354520389Publication House
Spectrum Of Thoughts
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